पर्यटन स्थल–हाजी अली
हाजी अली एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल और मुसलमानों का तीर्थ स्थल है। यह बम्बई के (हाजी अली) ग्रांट रोड उपनगर के समुद्र की गोद में स्थित है। इस दरगाह की बिल्डिंग संगमरमर के पत्थर से निर्मित है। यहां लोग देश विदेश से घूमने के लिए आते हैं। इस दरगाह में फिल्मों की शूटिंग भी होती है।
हाजी अली बाबा से लोग अपनी मुरादें मांगने जाते हैं। जो सच्चे और नेक दिल से मांगता है, वह अवश्य पाता है।
यह दरगाह समुद्र के बीच में स्थित है। आने-जाने के लिए मात्र एक पतला रास्ता है जिस पर हमेशा लोगों के आने जाने की भीड़ लगी रहती है। दुकानदार भी इस रास्ते पर लगे रहते हैं। लाचार मजबूर, अपंग, अपाहिजों की रास्ते के दोनों किनारों पर कतार लगी रहती है जो सिर्फ बुलंद आवाज में हाजी अली बाबा और अल्लाह को याद करते हैं।
बाहरी दृश्य बहुत ही मनोहर होता है। समुद्र की नाचती लहरें आती हैं और मिट जाती हैं। स्टीमर लहरों पर सांप की तरह दौड़ते हैं। यहां हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई सभी धर्मों के लोग घूमने व मुरादें लेकर आते हैं।
हाजी अली बाबा की दरगाह को यदि देखना हो तो पर्यटकों को यहां गर्मी के मौसम में आना अति उत्तम साबित होगा क्योंकि गर्मी में समुद्र का जल थोड़ा दरगाह से नीचे सरक जाता है और काले-काले समुद्री पत्थरों की चट्टानें दिखने लगती हैं जो अति सुन्दर लगती हैं। दूसरी बात, गर्मी में समुद्र की ठण्डी-ठण्डी पवन के हरहराते झंकोरे (वैसे झंकोरे सभी मौसम में रहते हैं।) से लिपट कर समुद्र की उठती गिरती लहरों का आनंद लेते हुए समुद्र में स्नान करना चित्त विभोर कर देगा।
दरगाह के अन्दर मजार के अलावा जगहों पर किस्म-किस्म के पुष्पों के हार और चादर की, साथ में नाना प्रकार की मिठाइयों की भी दुकानें लगी रहती हैं जहां से फूल-मिठाई खरीद कर मजार पर रख दिया जाते हैं जिसकी फातिहा होती है। बाबा की उम्मती मजार पर बिछाई चादर को अदब से चूम कर दुआ मांगता है। पुन: रखे गये फूल-मिठाइयों के आधे अंश को वापस उठाकर उल्टे कदम मजार से बाहर निकल आता है। वापस लाई गई मिठाई को सिन्न कहते हैं।
दरगाह में सजावट के वृक्ष भी लगाए गये हैं जो सुन्दरता बढ़ाने के साथ-साथ लोगों के मन्नतों के धागे बांधने का भी कार्य करते हैं अर्थात् लोग उन वृक्षों के तने में अपनी मन्नत के धागे बांध कर चले जाते हैं। मन्नत पूर्ण होने पर दोबारा आकर धागा खोलते हैं। वृक्ष के तने में इतना धागा बांधा गया कच्चा धागा कैसे पहचान में आयेगा, इसलिए उन बंधे धागों में से कोई भी एक धागा खोल दिया जाता है।
जहां एक तरफ बाबा के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ जमी रहती है वहीं दूसरी ओर मौलवी-मौलानों के कुरान-तेलावत की महफिल लगी रहती है।
यहां खैरात किये गये पैसों की गिनती नहीं की जाती बल्कि उन्हें झन्ने से चाला जाता है जो क्रमानुसार एक रूपया, दो रूपया, पचास पैसा के सिक्के अलग किये जाते हैं। इस धन राशि को अलग करके, बोरे में भर कर, सिलाई मार कर छल्ला दिया जाता है, बनिये के गल्ले के समान।
यदि आप पर्यटन के शौकीन हैं, स्वयं को एक पर्यटक मानते हैं तो एक बार अवश्य हाजी अली बाबा की दरगाह का दीदार करें। अगर भाग्य अच्छा रहा तो किसी न किसी फिल्म की शूटिंग भी आप देख लेंगे। —————– (उर्वशी)